छायावाद अर्थ , परिभाषा एवं विशेषता

By Hindisahitya

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छायावाद का अर्थ , परिभाषा एवं विशेषता

 छायावाद :- (1918-1936)

 छायावाद का सबसे उज्ज्वल पक्ष- मानवतावाद

 इस काल की प्रमुख पत्रिका – इन्दु (संपादन 1909 काशी से जयशंकर प्रसाद )

स्वच्छंदतावाद या छायावाद के गुण सर्वप्रथम श्रीधर पाठक की रचनाओं में मिला।

 छायावाद की प्रारंभिक रचनाओं में प्रसाद कृत झरना ( 1918 ) है, जबकि छायावाद का परिष्कृत रूप ‘आँसू‘ (1925) में मिलता हैं।

छायावाद का प्रवर्तक – जयशंकर प्रसाद

शुक्ल के अनुसार प्रवर्तक – मुकुटधर पाण्डेय
नंद दुलारे वाजपेयी के अनुसार- सुमित्रानंदन पंत

 प्रभाकर माचवे तथा विनय तोष के अनुसार छायावाद का प्रवर्तक- माखनलाल चतुर्वेदी

छायावाद का अर्थ , परिभाषा एवं विशेषता
            छायावाद का अर्थ , परिभाषा एवं विशेषता

नामकरण: –

विभिन्न विद्वानों ने छायावाद को इस प्रकार स्पष्ट किया है-

 मुकुटधर पाण्डेय– रहस्यवाद –

शुक्ल (शुक्ल ने भी रहस्यवाद माना)

शुक्ल – शैली वैचित्र्य (साहित्य में मधुचर्या इन्ही की देन है , जो रस के लिए साधारणीकरण में प्रयोग किया था।

नंददुलारे वाजपेयी – आध्यात्मिक छाया का भान

महावीर प्रसाद द्विवेदी– अन्योक्ति पद्धति

डॉ. नगेन्द्र – स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह

रामकुमार वर्मा – परमात्मा की छाया आत्मा पर एवं आत्मा की छाया परमात्मा पर पड़ना ही छायावाद है,

 आत्माभिव्यक्ति का वह ढंग जिसके अनुसार सौंदर्भमय प्रकृति की कल्पना करके ध्वनि लक्षणा आदि के द्वारा उसके संबंध में अपनी अनुभूति प्रकट करना ही छायावाद है।

छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भ है-

1.जयशंकर प्रसाद (ब्रह्मा)

2.सुमित्रानंदन पंत (विष्णु)

3. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला (महेश)

4. महादेवी वर्मा ( दुर्गा / शक्ति)

बृहत्तत्रयी – पन्त , प्रसाद, निराला

लघुत्रयी – महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, भगवती चरण वर्मा

विरोध :- आगे चलकर पंत तथा महादेवी वर्मा ने छायावाद का विरोध किया –

(1)पंत ने अलंकृत संगीत कहकर

(2) महादेवी ने सूक्ष्मगत सत्ता के सौंदर्य का राज कहकर विरोध किया।

छायावाद में नारी को जो सम्मान तथा प्रतिष्ठा मिला, वह अन्य किसी काल में नहीं मिला।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का छायावाद के सम्बंध में कथन –

● छायावाद शब्द का अर्थ रहस्यवाद से जोड़ते हुए कहते है कि यूरोप में इसे छाया कहा गया है , उसी के अनुकरण पर बंगाल में ब्रह्म समाज मे आध्यात्मिक गीत या भजन बनने लगे , वे छायावाद कहलाने लगे। फिर यह शब्द वहां से धार्मिक क्षेत्र से साहित्य में आया और रवीन्द्रनाथ टैगोर के आध्यात्मिक गीतों की धूम मचाने के बाद हिंदी साहित्य में आया ।

● छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थो में समझना चाहिए – एक रहस्यवाद के अर्थ में , जहाँ कवि उस अनंत और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन कर अत्यंत चित्रमयी भाषा मे प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है , दुसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ से है।

● छायावाद का सामान्य अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाली छाया के रूप में अप्रस्तुत का कथन।

● छायावाद का चलन द्विवेदी काल की रूखी इतिवृत्तात्मक की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।

● अन्योक्ति पद्धति का अवलंबन छायावाद का एक विशेष लक्षण है ।

डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार – परमात्मा की छाया आत्मा पर और आत्मा की छाया परमात्मा पर यही ही छायावाद है।

जयशंकर प्रसाद के अनुसार – रहस्यवाद की सौंदर्यमयी व्यंजना छायावाद है।

डॉ. नगेन्द्र के अनुसार – छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है।

डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार – छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह नही है वरन थोथी नैतिकता , रूढ़िवाद और सामंती साम्राज्यवादी बंधनो के प्रति विद्रोह रहा है।

शांतिप्रिय द्विवेदी के अनुसार – छायावाद एक दार्शनिक अनुभूति है।

डॉ. देवराज के अनुसार – छायावाद गीतिकाव्य है , प्रकृति काव्य है , प्रेम काव्य है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार – वह कविता छायावादी है जिसमे मानवतावाद , शास्त्रीय कठिनाइयों के प्रति अनास्था , सांस्कृतिक चेतना व आध्यात्मिक व्याकुलता की अभिव्यक्ति है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार – बंगला में कभी छायावाद नाम पड़ा ही नही ।

डॉ. नामवर सिंह के अनुसार – छायावाद वस्तुतः कई काव्य प्रवृत्तियों का सामुहिक नाम है व उस राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है , जो एक ओर विदेशी पराधीनता से मुक्ति चाहता है और दूसरी ओर प्राचीन रूढ़ियों से है।

नंद दुलारे वाजपेयी के अनुसार – मानव अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव मेरे विचार से छायावाद की सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है।

बाबू गुलाबराय के अनुसार – प्रकृति की गोचर सीमाओं को पार कर उसमें दृश्यमान इतिवृत्तात्मक भौतिकता की अपेक्षा एक अलौकिक अगोचर मानवी भावुकता के दर्शन की प्रकृति को छायावाद कहते हैं।

महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार – किसी कविता के भावों की छाया यदि कही अन्यत्र जाकर पड़े तो उसे छायावादी कविता कहना चाहिए ।

छायावाद नवयुवकों के दिमाग का फितूर मात्र है या अन्योक्ति पद्धति मात्र है।

छायावाद की प्रवृत्तियाँ –

  • आत्माभिव्यक्ति या वैयक्तिकता
  • प्रकृति चित्रण या प्रकृति प्रेम – आलम्बन रूप में
  • राष्ट्रीयता की भावना
  • नारी चित्रण
  • रहस्यवाद
  • स्वच्छंदतावाद
  • वेदना , निराशा
  • मानवतावाद
  • प्रतीकात्मकता
  • गेयात्मकता
  • काव्य रूप – प्रबन्ध व मुक्तक
  • भाषा शैली – खड़ी बोली

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